कल उसने एक रात ओढ़ी थी
कल उसने एक रात ओढ़ी थी; चाँद को माथे पर लगाया था। एक डिब्बी जुगनू लपेट; अंगुली भर तारे समेट; रात की रानी के साथ पिरो - बालों में गजरा लगाया था। कल कलाई पर कुछ क्यारियाँ, एक कालीन हथेली पर सजा कुछ तितलियों से और तर्जनी पर सूरज किरन; उसने चंदन इत्र उढ़ेल आँचल पर गुलशन महकाया था। उसने चंद्रमुख बेला पिरो लक्ष्य रस में डुबो कर, कल एक पाँव में बाँध और दूसरे में खरी चांदनी, मनभावन मृग चाल से बीहड़ में सरगम खनकाया था। ***