कल उसने एक रात ओढ़ी थी



कल उसने एक रात ओढ़ी थी;
चाँद को माथे पर लगाया था। 
एक डिब्बी जुगनू लपेट;
अंगुली भर तारे समेट;
रात की रानी के साथ पिरो - 
बालों में गजरा लगाया था। 

कल कलाई पर कुछ क्यारियाँ, 
एक कालीन हथेली पर 
सजा कुछ तितलियों से
और तर्जनी पर सूरज किरन;
उसने चंदन इत्र उढ़ेल 
आँचल पर गुलशन महकाया था। 

उसने चंद्रमुख बेला पिरो
लक्ष्य रस में डुबो कर, 
कल एक पाँव में बाँध 
और दूसरे में खरी चांदनी, 
मनभावन मृग चाल से
बीहड़ में सरगम खनकाया था। 

***

Comments

  1. हंस सदृश निश्छल त्यौरियां
    कानों पर झिंगुरी बालियां
    होंठ गंगा की कलकल हिलोरे
    नाक अल्हड़ पंछियों की कतार
    आंखे तारों सी क्षितिज पर चमकती
    स्याह बादलों का काजल लगाया था।

    धीमे पाज़ेबो की खनक
    रेत के ऊपर सन्नाटे सी
    झिलमिल सितारों के बीच
    पलटकर देखती बुलबुल आँखें
    झीनी साड़ी हाथों में थामें
    लजाकर दौड़ लगाया था।

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  2. बहुत सुन्दश्र Harsh एवं नैना। Discovering this new Naina other than her twitter persona

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